Category: 2010

तीर्थंकर

तीर्थंकर के अवधिज्ञान जन्म से होता है । विदेह क्षेत्र में दो और तीन कल्याणक वाले तीर्थंकरों के तीर्थंकर-प्रकृति बंधने के समय से होता है

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निगोदिया की आयु

स्वांस का 1/18 भाग ( जिसमें निगोदिया एक बार जीता और एक बार मरता है ) आज के 1 सेकेंड़ के 1/24 वें भाग के

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अघातिया कर्म

अघातिया कर्मों से बाह्य सामाग्री की प्राप्ति होती है । कर्म जड़ हैं, बलहीन हैं तो बाह्य सामाग्री इनसे कैसे मिलती है ? कर्मोदय तो

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उदय/सत्ता/उदीरणा

आचार्य श्री विद्यासागर जी के अनुसार – आठों कर्मों का दसवें गुणस्थान तक उदय, सत्ता और उदीरणा चलती रहती है । यह नियम है, अन्यथा

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सुक्ष्म जीव

सुक्ष्म जीव सांस लेने में कौन से जीवों को ग्रहण करते होंगे ? बादर  वायुकायिक या वायु को सांस में ग्रहण करते हैं । 12 वें

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उपशम श्रेणी

उपशम श्रेणी में उत्कृष्ट 4 बार ही जीव जायेगा, फिर क्षपक श्रेणी होता हुआ मोक्ष चला जायेगा ।

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नरक में लेश्या

नरक में आयुपर्यन्त अपनी अपनी लेश्या रहती है । स्वस्थान संक्रमण में हानि वृद्धि अन्तर्मुहूर्त बाद अपनी अपनी लेश्या में होता रहता है । कर्मकांड़

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भावलिंगी

छठे गुणस्थान और ऊपर वाले भावलिंगी मुनि ही होते हैं । अनुत्तर और अनुदिश स्वर्गों में भावलिंगी मुनि ही जाते हैं । जिज्ञासा समाधान पेज

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देवायु बंध

सम्यग्दर्शन के साथ अणुव्रत और महाव्रत, मिथ्यादर्शन के साथ बालतप – अकाम निर्जरा, समीचीन धर्म श्रवण, आयतन सेवा तथा सराग संयम से । कर्मकांड़ गाथा

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मनुष्यायु बंध

मंद कषायी यानि मृदु भाषी, असंयम, मध्यम गुणों, मरण समय पर संक्लेश रहित परिणामों से । कर्मकांड़ गाथा : – 806

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मंगल आशीष

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