Category: 2010
तिर्यंचायु बंध
विपरीत मार्ग उपदेश, मायाचारी, 3 शल्य ( मिथ्यात्व, माया और निदान ), मरण समय आर्तध्यान से । कर्मकांड़ गाथा : – 805
नरकायु बंध
मिथ्यादर्शन, बहुत आरंभ, अपरिमित परिग्रह, कुशील, तीव्र लोभ, रौद्र परिणाम और पाप करने में बुद्धि रखने से बंधती है । कर्मकांड़ गाथा : – 804
चारित्र मोहनीय बंध
तीव्र कषाय और नो कषाय, अधिक मोह, रागद्वेष में अति लीनता से तीव्र अनुभाग का बंध होगा । तीव्र कषाय – तपस्वियों के चारित्र में
दर्शन मोहनीय/मिथ्यात्व बंध के कारण
अरिहंत, सिद्ध, उनके चैत्य ( प्रतिमा ) , गुरू ( जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान या सम्यग्चारित्र में हमसे श्रेष्ठ हों ), श्रुत, धर्म, संघ का अवर्णवाद
वेदनीय कर्म बंध के कारण
साता का बंध – दया, व्रत ( हिंसादि त्याग), योग ( समाधि परिणाम ), धर्म-ध्यान, शुक्ल-ध्यान, क्षमा, दान ( आहार, औषधि, अभय, ज्ञान ) पंचपरमेष्ठी
तीर्थंकर प्रकृति
3 अशुभ लेश्याओं में तीर्थंकर प्रकृति का प्रारंभ नहीं होता । लेकिन नरक आयु पहले से बंधे होने पर, तीसरे नरक तक कपोत लेश्या में
उद्वेलना
रस्सी को बटा, फ़िर खोल दिया । अपकर्षण करके अन्य प्रकृति रूप प्राप्त करा कर नाश करना । कर्मकांड़ गाथा : – 349
मिथ्याद्रष्टि
अनादि मिथ्याद्रष्टि के मोक्ष जाने का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । पं. रतनलाल बैनाडा जी
बंध
कार्मण वर्गणाओं का आत्मा के साथ एक मेव होना । लड़की देखने गये – आस्रव अंगूठी पहनाई – बंध इस तरह अलग-अलग दो क्रियायें होते
आस्रव
कार्मण वर्गणाओं का कर्मरूप परिवर्तित होना । पं. रतनलाल बैनाडा जी
Recent Comments