Category: 2010
समय प्रबद्ध
एक समय में जितनी वर्गणायें कर्म रूप परिवर्तित हो । पं. रतनलाल बैनाडा जी
देवता
देवों के कपड़े, आभूषण, सुख और शरीर कैसा होता है ? देवों जैसा । पं. रतनलाल बैनाडा जी ( भगवान कैसे होते हैं ? भगवान
स्थावर
कलकला पृथ्वी ( निगोद ) में पांचौं स्थावर पाये जाते हैं । पं. रतनलाल बैनाडा जी
दूरांतर-भव्य
दूरांतर-भव्य अनादि-अनंत निगोद में ही रहते हैं । पं. रतनलाल बैनाडा जी ( मुख्तार जी के अनुसार भी )
सिद्ध
सिद्ध कर्मभूमि के अलावा भोगभूमि से भी जाते हैं ऐसे ही पृथ्वी के अलावा जल और वायु से भी, मध्यलोक के अलावा ऊर्ध्वलोक और अधोलोक
तैजस
तैजस दो प्रकार का होता है । निसरणात्मक :- जो शरीर के बाहर निकलता है, शुभ अथवा अशुभ । इस क्रिया को समुद्घात भी कहते
सैनी/असैनी
सैनी ही समता रख सकता है, असैनी के सिर्फ़ संज्ञायें होतीं हैं ।
भुज्यमान तथा बध्यमान की अपेक्षा
नरकायु का सत्त्व होने पर देशव्रत नहीं ले सकते हैं । तिर्यंचायु का सत्त्व होने पर महाव्रत नहीं ले सकते हैं । और देवायु का
तीर्थंकर प्रकृति
मिथ्यात्व गुणस्थान में भी तीर्थंकर प्रकृति का सत्त्व रहता है ( दूसरा या तीसरा नरक जिन्होंने पहले से बांध लिया है उनका नरक जाते समय
विश्रसोपचय
आत्मा के प्रत्येक प्रदेश पर अनंतानंत कार्मण वर्गणायें स्थित रहती हैं । पं. रतनलाल बैनाडा जी
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