Category: 2010
निगोद
अनित्य/इतर/चतुर्गति निगोद- अन्य पर्यायों में जन्म लेकर पुन: निगोद में जाते हैं (जैसे हम लोग) । अनित्य/अनादि-सान्त निगोद- अभी वे जीव निगोद में हैं, पर अन्य
निगोदिया जीव
बादर निगोदिया – निगोद से निकल कर, मनुष्य बनकर मोक्ष जा सकते हैं । (जैसे भरत चक्रवर्ती के पुत्र) सूक्ष्म निगोदिया – मनुष्य बनकर, पांचवें
चतुर्थ-गुणस्थान का जघन्य काल
प्रश्न : चतुर्थ-गुणस्थान का जघन्य काल कितना होता है ? उत्तर : चतुर्थ-गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभव से भी कम होता है । पं.
श्वासोच्छ्वास का काल
जघन्य श्वासोच्छ्वास का काल एकेन्द्रिय जीवों के होता है, उत्कृष्ट श्वासोच्छ्वास सर्वार्थसिद्धि के देवों के होता है, उत्कृष्ट काल, जघन्य से संख्यात गुणा होता है
नि:कांक्षित
जब वांक्षा नहीं, तो वांक्षा-जन्य कर्म-बंध भी नहीं होगा, किन्तु पूर्व-कर्मों की निर्जरा होगी । आचार्य श्री विद्यासागर जी (समयसार-245 )
निर्विचिकित्सा
घृणा न होने से तथा अपितु वस्तु के स्वरूप को ध्यान रखने से कर्म-बंध नहीं होता, पर निर्जरा होती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
निगोदिया
एक शरीर में अनंत निगोदिया, बादर निगोदियों की अपेक्षा से कहा गया है । बादर जीव ही किसी के आधार से रहते हैं । सुक्ष्म
बंधन/संघात
तैजस तथा कार्मण शरीरों में बंधन तथा संघात, कर्म वर्गणाओं को बांधते हैं तथा Plastering करते रहते हैं ।
लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य
प्रश्न : क्या लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य सैनी कहे जा सकते हैं ? उत्तर : लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य जीव के पर्याप्तियां तो पूरी नहीं होतीं । इसलिये भाव
क्षुद्रभव
प्रश्न : क्षुद्रभव से क्या अभिप्राय है ? इसका जघन्य काल कितना होता है ? उत्तर : क्षुद्रभव से अभिप्राय 1/24 सैकण्ड़ से है, इसमें
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