Category: 2011

उपयोग

1 से 3 गुणस्थान में घटता हुआ अशुभोपयोग होता है। यह तीव्र कषाय की अपेक्षा से होता है। 4 से 6 गुणस्थान में बढ़ता हुआ

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उपयोग

एक जीव के एक काल में, 5 मिथ्यात्व में से, 1 का ही उदय होता है, 6 इन्द्रियों  (5 + मन) में से, एक इन्द्रिय

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आयु/गति बंध/कदलीघात

जिस समय आयु का बंध होता है, उस समय गति का बंध भी आयु के अनुसार ही होगा। मिथ्यात्वी के चारों गतियों का बंध संभव

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उद्वेलन प्रकृतियाँ

आहारक-द्विक, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यग्प्रकृति, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियक-द्विक, उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य गत्यानुपूर्वी । आहारक-द्विक की संयत से असंयत को प्राप्त होने पर उद्वेलना

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शुभराग और शुभोपयोग

शुभराग और शुभोपयोग में अंतर ? और इनके स्वामी ? शुभराग :- निरतिषय मिथ्यादृष्टि के, जिससे पुण्य बंध हैं, संवर निर्जरा नहीं होती । शुभोपयोग

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तीर्थंकर प्रक्रति

तीर्थंकर प्रक्रति का अनुभाग कभी कम और कभी ज्यादा तो बंधता है,पर उदय में कम या ज्यादा कैसे आएगा ? बंधता तो कम ज्यादा है

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कर्म बंध/निर्जरा

गाय रस्सी से बंधी है या रस्सी रस्सी से (गाँठ से) बंधी है? आत्मा रूपी गाय भी कर्मो से नहीं बंधी, कर्म कर्म से ही

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दृष्टि

नासाग्र दृष्टि ही सरल दृष्टि है, इसी से समता आती है । यह प्रमाण-ज्ञान है, जबकि दृष्टिकोण नय-ज्ञान है। नासाग्र दृष्टि – नाक की सीध

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धर्मध्यान/शुक्लध्यान

धर्म ध्यान – कर्म सुखाने के लिये जाडे़ की धूप है,  कर्म काटने के लिये मौथरा शस्त्र ( Blunt ) है। शुक्ल ध्यान – गर्मी की

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मंगल आशीष

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