Category: 2012

परमाणु में जाति भेद

परमाणु में जाति भेद नहीं होता, तभी तो लकड़ी (पृथ्वी) से अग्नि, भोजन से वायु (वात), अग्नि (पित्त) रूप परिणमन होता देखा जाता है ।

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केवली समुद्घात

दंड़ – औदारिक काय योग – पर्याप्ति काल कपाट – औदारिक मिश्र काय योग – अपर्याप्ति काल प्रतर – कार्मण काय योग – अपर्याप्ति काल

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आत्मा

आत्मा तो लोक-प्रमाण है, शरीर-प्रमाण तो शरीर नाम कर्म की वजह से रहती है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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उदीरणा

उदय व उदीरणा अकाम या सविपाक निर्जरा में भी  होतीं  हैं । पं. जवाहर लाल जी

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रौद्रध्यान

देशविरत के रौद्रध्यान हिंसा आदि के आवेश से या वित्तादि के परतंत्र होने से कदाचित भी हो सकता है । पर वह नरक का कारण नहीं

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शुद्ध द्रव्य

द्रव्यों में उत्पाद व्यय/षटगुणी वृद्धि हानि, अगुरूलघु गुण की अपेक्षा से है । पं रतनलाल बैनाड़ा जी

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उदय/उदीरणा/अकाल मृत्यु

कुछ अपवादों के साथ छठवें गुणस्थान तक जिन कर्मों का उदय है उनकी उदीरणा भी अवश्य होती है । मनुष्यायु का हर समय उदय भी

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मन:पर्यय

विपुलमती मन:पर्यय ज्ञानी वर्धमान चारित्री ही होते हैं, अत: वे उपशम श्रेणी आरोहण नहीं करते । यदि वे उपशम श्रेणी आरोहण करेंगे तो यथाख्यात चारित्र

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मंगल आशीष

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