Category: 2019
अभाव / पूर्वक
रत्नत्रय के अभाव में मोक्ष नहीं, रत्नत्रयपूर्वक ही मोक्ष होता है । ऐसे ही शुभोपयोगपूर्वक शुद्धोपयोग, क्षयोपशम पूर्वक क्षायिक-सम्यग्दर्शन होता है, अभाव से नहीं ।
मुनि के आहार में बंध
अशुद्ध आहार से पाप बंध, शुद्ध आहार से पुण्य बंध, शुद्धोपयोग से निर्जरा । (क्योंकि क्षुधा तो है ना) ज्ञानशाला
संवर / निर्जरा
संवर निर्जरा चारों गतियों में होती है । देव/नारकियों के सम्यग्दर्शन प्राप्ति के समय असंख्यात गुणी निर्जरा तथा संवर तो पहले से तीसरे गुणस्थान की
उपशम / उपशमन
उपशमन अंतर्मुहूर्त के लिये, उपशम (सदवस्था रूप) – 66 सागर तक । आचार्य श्री विद्यासागर जी
द्रव्यों में परिणमन
पुदगल में परिणमन दिखता है, अन्य द्रव्यों में कैसे समझें ? हाँड़ी के चावल पके या नहीं, समझने के लिये एक चावल देखकर समझ लिया
सराग/वीतराग सम्यग्दृष्टि
सराग सम्यग्दृष्टि – जिनकी श्रद्धा और करनी में अंतर हो, वीतराग सम्यग्दृष्टि – इनकी श्रद्धा और करनी में फर्क ना हो । मुनि श्री
कर्ता
निश्चय-नय से जिस वस्तु में परिणमन होता है, वही वस्तु उस परिणमन की कर्ता भी होती है । 1. शुद्ध निश्चय-नय से शुद्ध भावों का
विग्रह गति में लेश्या
विग्रह गति में भाव लेश्या छहों हो सकती हैं, पर द्रव्य लेश्या कापोत ही होती है । पं रतनलाल बैनाड़ा जी
आत्मा चेतनारूप या ज्ञाता दृष्टा रूप ?
अभेद दृष्टि से चेतना रूप । चेतना को समझने के लिये भेद दृष्टि से आत्मा, ज्ञाता दृष्टा रूप । और विस्तार से समझना हो तो
कर्म का विभाजन
जिस अनुभाग व स्थिति से कोई कर्म-बंध होता है, उसी अनुभाग व स्थिति से 7 कर्मों में विभाजन होता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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