Category: 2020

संज्ञायें

सुबह, आहार संज्ञा प्रमुख रहती है, दिन में परिग्रह, शाम को भय, रात्री में मैथुन । मुनि श्री अविचलसागर जी

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सिद्धों में वीर्यत्व

सिद्धों में अनन्त वीर्यत्व, दूसरे पदार्थों के द्वारा प्रतिघात ना हो पाने की अपेक्षा घटित होता है । आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी

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परिणमन

कर्म परमाणुओं का भी परिणमन होता है – स्कंध रूप फिर कर्म-वर्गणायें । जूस* युक्त  जूस रहित । * कर्म-फल देने की शक्ति मुनि श्री

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आध्यात्म ग्रंथ

द्रव्यानुयोग के 3 भाग – 1. न्याय 2. आध्यात्म 3. जीव के वर्णन वाले ग्रंथ आध्यात्म, द्रव्यानुयोग में आयेगा; परन्तु सारे द्रव्यानुयोग के ग्रंथ आध्यात्म

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नय

व्यवहार नय – पिता पुत्र की अपेक्षा, “पर” सापेक्ष, भेद रूप, दर्जी द्वारा कपड़े के टुकड़े करना, निश्चय तक पहुँचाता है । निश्चय नय –

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विग्रह/ऋजु गति

विग्रह गति में जीव छहों दिशाओं में जा सकता है, जबकि ऋजु गति में सिद्ध भगवान, ऊर्ध्व दिशा में ही जाते हैं । निधि-मुम्बई

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विसंयोजना

अनंतानुबंधी की विसंयोजना चारौं गतियों में होती है । कषायपाहुड़ – II पेज 220 & 232 स्व. पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी

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आचार

दर्शन, ज्ञान, चारित्राचार के बाद तपाचार (निर्जरा में तेजी के अलावा) पहले तीनों को अभेद रूप करने के लिये आवश्यक है, जैसे हलुए का स्वाद/सुगंधि

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मंगल आशीष

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