Category: 2012
वर्गणाओं का काल
तैजस वर्गणाओं का काल – जघन्य – एक समय उत्कृष्ट – 66 सागर कार्मण वर्गणाओं का काल – जघन्य – एक समय उत्कृष्ट – 70
द्रव्यलिंगी
द्रव्यलिंगी मुनियों के गुणस्थान 1 से 5 तक होते हैं । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
विहायोगति
विहायोगति नामकर्म का उदय त्रस जीवों के पर्याप्त अवस्था में ही होता है । तत्वार्थसूत्र टीका – पं पन्नालाल जी
निदान
इस आर्तध्यान से जीव मिथ्याद्रष्टि हो जाता है । श्री धवला जी – 6/501
भाव निर्जरा
भाव निर्जरा में सविपाक, अविपाक भेद नहीं होते । पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
अविपाक निर्जरा
अविपाक निर्जरा पहले गुणस्थान में भी संभव है । जब जीव सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़ा तो यानि करणलब्धि में हो तब । पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
कर्माश्रव
आत्मा से बंधने कर्म बाहर से नहीं आते । जितने क्षेत्र में आत्मा स्थित है उसी क्षेत्र में अनंत वर्गणायें हैं, वे कर्मरूप परिवर्तित होकर
भेद/मार्गणा
मार्गणा का मतलब खोज है, भेद नहीं । जैसे संयम मार्गणा में, असंयम, संयमासंयम बताए हैं, ये संयम के भेद नहीं हैं । पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
द्रव्यों की पर्याय
मात्र जीव और पुदगलों की व्यंजन पर्याय होती है, बाकी सबकी अर्थ पर्याय होती है । श्री बृहज्जिनोपदेश – 85
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