Category: 2018
अनंत बार ग्रैवियक
अनंत बार ग्रैवियक गये, कुछ नहीं हुआ; इससे मुनि पद की भूमिका कम नहीं हुई, मिथ्यात्व(या पुरुषार्थ की कमी) का दोष है । मुनि श्री
मोहनीय स्थिति
मोहनीय की जघन्य स्थिति-बंध 9वें गुणस्थान में, जबकि बाकी कर्मों की 10वें गुणस्थान में, ऐसा क्यों ? 9वें गुणस्थान में मोहनीय इतना कमजोर हो जाता
क्षयोपशम भाव
मिथ्यादृष्टि के भी क्षयोपशम-भाव होते हैं, 1 से 12 गुणस्थानों में मतिज्ञान आदि 4 ज्ञान, 3 अज्ञान, 3 दर्शन, दानादि-5लब्धि, सम्यक्त्व, चारित्र और संयमासंयम ।
प्रशम
सम्यग्दृष्टियों के प्रशम भाव कैसे ? प्रशम भाव के दो भेद – 1. नारकियों/गृहस्थों/त्रियंचों/देवों का, जिसमें विरोधी हिंसा का त्याग नहीं । 2. मुनियों का
असाता और भूख
असाता से भूख लगती है , भूख ना लगना, तीव्र असाता से । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
वेदनीय की स्थिति
असाता का उत्कृष्ट उदय 33 सागर (7वें नरक में), पर इस अवधि में साता का भी उदय आ सकता है, परन्तु जघन्य होने से उसका
नील लेश्या
नील लेश्या पूरा (जान से) तो नहीं मारती पर कुछ करने योग्य भी नहीं छोड़ती (जैसे हाथ पैर कट जाना) । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
रागद्वेष
रागद्वेष औदायिक भाव हैं । इनके लिये बाह्य निमित्त (मन भी हो सकता है) आवश्यक है । मुनि श्री समयसागर जी
श्रुतज्ञान
केवलज्ञान के लिये द्रव्य-श्रुत की आवश्यकता नहीं, जैसे शिवभूति महाराज का श्रुतज्ञान । पर भाव-श्रुत पूरा होना चाहिये । मुनि श्री समयसागर जी
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