Category: 2014

बंध

एक भेद है – “अनादि वैस्रिसिक* बंध” धर्म, अधर्म और आकाश, तीनों का परस्पर संबंध । कालाणुओं का भी ऐसा ही बंध है क्योंकि उनका

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कर्म/नोकर्म

कर्म – आत्मा के योग परिणामों के द्वारा किया जाता है । नोकर्म – कर्म के उदय से होने वाले औदारिक आदि रूप पुदगल परिणाम, जो

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परमाणु में गमन

मंदगति से परमाणु एक समय में – एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक गमन करता है तथा तीव्र गति से एक समय में चौदह राजू

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मन:पर्यय ज्ञान

मन के आलम्बन से जाना जाता है तो मतिज्ञान क्यों नहीं कहा ? चंद्रमा को देखने आकाश की साधारण अपेक्षा होती है, पर है तो

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आहार संज्ञा

स्वर्ग और नरक में भोजन/मिट्टी बहुत बहुत काल के बाद खायी जाती है, तो आहार संज्ञा हर समय कैसे ? आहार संज्ञा छ्ठवें गुणस्थान तक

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असिद्धत्व

अनादि कर्मबद्ध आत्मा के 10 वें गुणस्थान तक आठों कर्मों के उदय से असिद्ध पर्याय होती है । 11, 12 वें में मोहनीय के अलावा

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लेश्या

सब जीवों की द्रव्यलेश्या विग्रहगति में शुक्ल ही होती है । अपर्याप्त अवस्था में कपोत । भाव लेश्या छहों हो सकतीं हैं । पं. रतनलाल

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स्वप्न

स्वप्न किस कर्म के उदय से आते हैं ? श्री कषायपाहुड़ के अनुसार – स्वप्न स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण के उदय से आते हैं । क्योंकि सोते

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अवधिज्ञान

गुणप्रत्यय अवधिज्ञान में नाभि के ऊपर शरीर पर चिन्ह आ जाते हैं, वहीं के आत्म प्रदेशों के द्वारा होता है, जानते शरीर के पूरे प्रदेश हैं

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मंगल आशीष

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