Category: 2014

केवलज्ञान

ज्ञान-गुण आत्मा का स्वभाव है । वह केवलज्ञानावरण कर्म से ढ़का हुआ है, उसके हटने से आत्मा का स्वभाव उभर आता है, उसे हम केवलज्ञान

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अशुभोपयोग

मिथ्यादृष्टि के सम्यग्दर्शन के सम्मुख अनिवृतिकरण में अशुभोपयोग की मंदतम दशा, हालाँकि इस समय असंख्यात गुणी निर्जरा भी हो रही होती है । पहले से

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भूतार्थ

भूतार्थ यानि सच्चा !! जैसे व्यवहार नय की अपेक्षा व्यवहार नय का विवेचन भूतार्थ है और निश्चय नय का अभूतार्थ, ऐसे ही विपरीत समझना । पं.

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स्थिति बंध

दर्शन मोह – मिथ्यात्व का उत्कृष्ट = 70 कोड़ाकोड़ी सागर चारित्र मोह का उत्कृष्ट = 40 कोड़ाकोड़ी सागर असाता का उत्कृष्ट = 30 कोड़ाकोड़ी सागर

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आयुबंध

कर्मभूमिज मनुष्य व तिर्यंचों की अपेक्षा मनुष्यायु का बंध दूसरे गुणस्थान तक (क्योंकि सम्यग्दृष्टि मनुष्य/तिर्यंच देव ही बनते हैं, जबकि देव/नारकियों को अगले जन्म में

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सर्वघाती कषाय

अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान सर्वघाती तो संज्वलन क्यों नहीं ? वह भी तो यथाख्यात चारित्र नहीं होने देती है ? आत्मा का अनुभव तीव्र कषाओं में

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सिद्धों के भाव

क्षायिक भावों के अलावा सिद्ध भगवान के जीवत्व पारिणामिक भाव भी होता है । सिद्धों के भी भाव होते हैं ? हाँ, उनके भी परिणमन

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कार्य/कारण

जो पर्याय अपनी पूर्व पर्याय का कार्य होती है, वही पर्याय अपनी उत्तर पर्याय का कारण होती है । श्री कार्तिकेयानुपेक्षा – 223 गाथा

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मंगल आशीष

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