Category: 2015

अनंत

काल पर्यायात्मक अनंत है, जीव द्रव्यात्मक । पं. श्री मूलचंद्र लुहाड़िया जी

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कर्म बंध

कहते हैं – कर्म कर्म को खींचते हैं । पर चौदहवें गुणस्थान में तो कर्म सत्ता में हैं, पर आश्रव नहीं ? कारण – योग/निमित्त

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संसार व लोक भावना

संसार भावना – भावनात्मक, चार गति, रागद्वेष, लोक भावना – क्षेत्रात्मक , छ: द्रव्यों के बारे में ।

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आर्यिका

संयम लब्धि सर्वोत्कृष्ट, संयमासंयम लब्धि उस पुरूष श्रावक की, जो मुनि बनने के सम्मुख खड़ा है ।

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पल्य/सागर

पल्य , 45 अंक प्रमाण होता है । सागर=10 कोडा कोडी पल्य का । बाई जी

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तीर्थंकर प्रकृति बंध

नरक में 2 पर्याप्तियाँ पूर्ण होते ही तीर्थंकर प्रकृति बंध शुरू होता है । बिना करण के सम्यग्दर्शन, फिर तीर्थंकर प्रकृति बंध शुरू, पहले गुणस्थान

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भगवान में आत्मा

14वे गुणस्थान तथा सिद्धों की आत्मा, पूर्व शरीर से कुछ कम, क्योंकि नामकर्म का उदय 13वे गुणस्थान तक ही होता है । पाठशाला

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मंगल आशीष

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October 30, 2015

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