Category: 2016
निद्रा
निद्रा आती तभी है जब साता + निद्रा कर्म का उदय साथ साथ होता है । क्षु. ध्यानसागर जी
अगुरूलघु
अशुद्ध जीवों में यह कर्मरूप होता है और शरीर को अति भारी/हल्का नहीं होने देता, शुद्ध द्रव्यों में यह गुणरूप होता है और षटगुणी हानि
दर्शनावरण/दर्शनमोहनीय
दर्शनावरण – दृष्टि पर आवरण, दर्शनमोहनीय – दृष्टि का उल्टा होना । चिंतन
पर्याय/केवलज्ञान/नश्वरता
अर्थ पर्याय नश्वर है, व्यंजन अनश्वर, जैसे देवों के विमान । केवलज्ञान भी व्यंजन पर्याय है ज्ञान की, इसमें परिणमन व्यवहार से माना है ।
अन्यत्व
जिससे संबंध नहीं, वह अपने आप भिन्न हो जायेगा । मुनि श्री समतासागर जी
आस्रव/संक्लेश
स्व और पर के निमित्त होने वाले सुख या दु:ख यदि विशुद्ध पूर्वक हैं तो पुण्यास्रव होगा, यदि संक्लेश पूर्वक हैं तो पापास्रव होगा ।
विस्रसोपचय
वर्गणाऐं जो कर्मरूप परिवर्तित होने को तैयार खड़ीं हैं, आत्मा में प्रवेश करने को तैयार खड़ीं हैं । जैसे मच्छरदानी में घुसने को मच्छर तैयार
अवधिज्ञान
सर्वार्थसिद्धि से आने वाले जीव अवधिज्ञान लेकर आते है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
समयप्रबद्ध
एक समय में बाँधी/उदय में आयी कर्मवर्गणाऐं । ये कम ज़्यादा हो सकती हैं । पाठशाला
अवधि दर्शन
कथन में अवधिदर्शन 4 गुणस्थान से 7 गुणस्थान तक कहा है । पर यह 1 से 3 गुणस्थान में भी होता है वरना कुअवधिज्ञानी के
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