Category: 2016
द्वीप/समुद्रों के संरक्षक
हर द्वीप और समुद्रों के दो-दो संरक्षक होते हैं । एक उत्तर का, दूसरा दक्षिण का । जैसे नंदीश्वर द्वीप के एक देव का नाम
क्षायिक सम्यग्दर्शन
केवली का पादमूल तथा व्रजवृषभनाराच संहनन जरूरी होता है । पाठशाला
द्रव्य/भाव
भाव में वर्तमान की प्रधानता होती है, द्रव्य में वर्तमान की प्रधानता नहीं होती है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
भाव
मुक्त जीवों के दो भाव (क्षायिक, पारिणामिक) तथा संसारिओं के 3, 4, तथा 5 भाव होते हैं ।
स्थिति
उत्कृष्ट संज्ञी के ही । जैसे मोहनीय ,संज्ञी के 70 कोड़ा कोड़ी सागर पर एक इंद्रिय के एक सागर से अधिक नहीं । पाठशाला
स्थिति बंध
प्रकृतियों का जघन्य स्थिति बंध, उनकी व्युच्छुत्ति के समय होता है । करूणानुयोग दीपक – 60
प्राण
संज्ञी के दस प्राण, पर्याप्तक की अपेक्षा कहा है । अपर्याप्तक अवस्था में तो सात प्राण (मन बल, वचन बल तथा श्वासोच्छवास बिना) ही होते
छठा काल
इसमें सम्यग्दर्शन नहीं होता है । कारण ? यहाँ अवधिज्ञान नहीं, सो पश्चाताप नहीं । जातिस्मरण नहीं, सो निमित्त नहीं । बाई जी
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