Tag: मुनि श्री प्रमाणसागर जी
आलोचना
ज्योति की कालिख़, धुंआ है । (मानवीय गुणों की कालिख़ आलोचना है) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
धर्म
धर्म क्या है ? अधर्म का अभाव ही धर्म है । (और अधर्म को तो हम सब खूब समझते ही हैं) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भूत / भविष्य / वर्तमान
भूत को Dustbin मानो, भविष्य को Notice Board, और वर्तमान को Writing Pad(for Notice Board) (पर WritingPad Dustbin से मत लेना-पुश्किन) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
शुद्धता / उपयोगता
बर्तन बाहर से मांजने पर शुद्ध दिखता है, पर उपयोगता अंदर की शुद्धता से ही होती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ज़िंदा / मुर्दा
लोग ज़िंदों को गिराते हैं, मुर्दों को उठाते हैं, ये कैसे लोग हैं ? जो ज़िंदा को गिराते हैं वे मुर्दा होते हैं* और मुर्दा
Busy
Busy रहना बुरा नहीं, Busy मानना बुरा है, Busy जैसा व्यवहार करना बुरा है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सक्रियता
जुगनू की चमक, उसके सक्रिय होने पर ही दिखती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
तम्बाकू
सब चीजें खींचने से बढ़तीं है, बीड़ी, सिगरेट खींचने से घटती हैं, जीवन को घटाती हैं । गुटका उम्र को गुटक जाता है । मुनि
दु:ख
अभाव दु:ख का कारण नहीं, अभाव की अनुभूति/एहसास कारण है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
प्रसन्नता
प्रेशर कुकर की तरह, क्रोध का प्रेशर आये तो प्रसन्नता की सीटी बजाओ । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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