Tag: मुनि श्री सुधासागर जी
आहार
आ.श्री विद्यासागर जी ने आहार में एक पंड़ित जी के हाथ से कोई चीज़ नहीं ली पर दूसरे व्यक्ति से ले ली । पंड़ित जी
धर्म / संसार
संसार (भव) सागर है, धर्म आक्सीजन सिलेण्डर, जिसके सहारे संसार में धंसे हुये भी निकल सकते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
पुण्योदय / पुरुषार्थ
आचार्य श्री का यश पुण्योदय से नहीं, उनके पुरुषार्थ/तप से फैला है । मुनि श्री सुधासागर जी
भरत पुत्रों का ना बोलना
चूंकि वे नित्य-निगोद से आये थे, पूर्व के संस्कार ही नहीं थे रागद्वेष/बोलने के, इसीलिये भी वे नहीं बोलते थे । मुनि श्री सुधा सागर
शक्तितस तप
शक्ति से ज्यादा तप/धर्म जैसे बिच्छू के काटे का तड़प तड़प कर मरना, शक्ति से कम… सांप के काटे का मदहोश मरना । मुनि श्री
ज्ञान / ध्यान
बहुत पढ़ना ज्ञान का विषय है, बार बार पढ़ना ध्यान का, जैसे माला जपना । मुनि श्री सुधासागर जी
मूर्ति पर फन
मूर्ति पर फन, बेलादि दिखने पर पूज्यता कम नहीं होती, क्योंकि बेलादि तपस्या के प्रतीक हैं, रागादि के नहीं । वैसे भी ये पूर्व/महान आचार्यों
समवसरण से लौटना
भरत चक्रवर्ती के तो निद्यती/निकाचित कर्म लौटाने के कारण थे, उन्हें भोग भोगने ही थे । सामान्यजन मोहवश लौटते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
न्याय शास्त्र
तर्कों के द्वारा आत्मा के अस्तित्व को जिन शास्त्रों में सिद्ध किया जाता है । मुनि श्री सुधासागर जी
पाप क्रियाओं के लिये धर्म
पाप क्रियाओं के लिये धर्म करने से सफलता तो मिलेगी पर उसका अंत-फल सही नहीं आयेगा, जैसे रावण का अंत-फल । मुनि श्री सुधासागर जी
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