अज्ञान सिर्फ मिथ्यात्व से ही नहीं, अनंतानुबंधी से भी होता है जैसे दूसरे गुणस्थान का अज्ञान जहाँ मिथ्यात्व का अनुदय है।
अप्रत्याख्यान तथा प्रत्याख्यान सर्वघाती प्रकृति होने से आगम में इसको भी अज्ञान कहा है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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अज्ञान का मतलब हित और अहित का विवेक नहीं होना है। अनंतानुबंधी का मतलब जो कषाय के कारण मिथात्व को बांधता है। इसके कारण सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन पूर्ण सत्य है।
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अज्ञान का मतलब हित और अहित का विवेक नहीं होना है। अनंतानुबंधी का मतलब जो कषाय के कारण मिथात्व को बांधता है। इसके कारण सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन पूर्ण सत्य है।