कर्म व आत्मा दोनों अदृश्य। कर्म को ही विधि कहा; सारा खेल कर्म का ही। इसीलिये कहते हैं- “विधि का विधान”।
हाइकू:
“अदृश्य विधि
ही जीवन चलाती
दृश्य सँभालें”
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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4 Responses
उपरोक्त कथन सत्य है कि कर्म एवं आत्मा अद्वष्य होती है। जीवन में सबसे अधिक प़भाव कर्मों का रहता है। उक्त कर्म आत्मा में चिपक जाते हैं।। अतः जीवन में अच्छे कर्मों का आश्रय लेना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि कर्म एवं आत्मा अद्वष्य होती है। जीवन में सबसे अधिक प़भाव कर्मों का रहता है। उक्त कर्म आत्मा में चिपक जाते हैं।। अतः जीवन में अच्छे कर्मों का आश्रय लेना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
Can meaning of “दृश्य सँभालें” in this context be explained, please ?
दृष्य हमारा पुरुषार्थ,
उसको सँभालना ही हमारे हाथ में है।
ये सँभल गया तो अदृष्य भी सँभल जायेगा।
Okay.