चार अनुयोग का कथन पहली बार आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने किया था ।
द्वादशांगादि में प्रथमानुयोग तो आता है अन्य तीन का नाम नहीं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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अनुयोग का तात्पर्य जिनवाणी के उपदेश की पद्धति को कहते हैं, जिसमें प़थमानुयोग,करुणानुयोग, चरणानुयोग और द़व्यानुयोग का उल्लेख किया गया है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि चार अनुयोग का कथन पहली बार आचार्य समन्तभ़द़ ने किया गया था। लेकिन द्वादशांगदि में प़थमानुयोग तो आता है, अन्य तीन का नाम नहीं है, क्योंकि इसमें सिर्फ प़थमानुयोग का ही उल्लेख किया गया है,हो सकता हो अन्य की व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती होगी।
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अनुयोग का तात्पर्य जिनवाणी के उपदेश की पद्धति को कहते हैं, जिसमें प़थमानुयोग,करुणानुयोग, चरणानुयोग और द़व्यानुयोग का उल्लेख किया गया है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि चार अनुयोग का कथन पहली बार आचार्य समन्तभ़द़ ने किया गया था। लेकिन द्वादशांगदि में प़थमानुयोग तो आता है, अन्य तीन का नाम नहीं है, क्योंकि इसमें सिर्फ प़थमानुयोग का ही उल्लेख किया गया है,हो सकता हो अन्य की व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती होगी।