“अभिनिबोध” मतिज्ञान का पर्यायवाची है।
इसका प्रयोग सम्यग्दर्शन के साथ ही होता है।
अभि = अभि (मुख)
नि = नियत (विषय अपनी अपनी इंद्रियों का)
बोध = बोधन (उससे जो ज्ञान प्राप्त करे)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 306)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अभिनिबोध की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है!
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अभिनिबोध की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है!
Yahan par ‘मुख’ ko kyun use kiya ?
इंद्रियों की ओर मुख यानी उपयोग उस ओर।
Okay.