असंज्ञी का मतिज्ञान भी धारणा तक होता है ।
वे इंद्रियों की सहायता तथा भाव-श्रुत से (संज्ञाओं के उदय में) सारे काम करते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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असंज्ञी- – बिना मन वाले जीव कहलाते हैं,ये शिक्षा, उपदेश आदि ग़हण करने में असमर्थ होते हैं।असंज्ञी असैनी और अमनवस्क एकार्थ वाची हैं।
संज्ञी- – असंज्ञी के विपरीत होते हैं। असंज्ञी का मतिज्ञान भी धारण तक होता है,वे इंद़ियो की सहायता तथा भाव श्रुत से संज्ञाओं के उदय में सारे काम करते हैं।
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असंज्ञी- – बिना मन वाले जीव कहलाते हैं,ये शिक्षा, उपदेश आदि ग़हण करने में असमर्थ होते हैं।असंज्ञी असैनी और अमनवस्क एकार्थ वाची हैं।
संज्ञी- – असंज्ञी के विपरीत होते हैं। असंज्ञी का मतिज्ञान भी धारण तक होता है,वे इंद़ियो की सहायता तथा भाव श्रुत से संज्ञाओं के उदय में सारे काम करते हैं।