उत्तम मार्दव (मान नहीं करना)
दूसरों के गुणों में अगर हम आह्लाद महसूस करते हैं तो मानियेगा हमारे भीतर मृदुता-कोमलता आनी शुरू हो गयी है।
तृप्ति मान-सम्मान से भी नहीं मिलती बल्कि मान-सम्मान मिलने के साथ हमारे भीतर जो कृतज्ञता और विनय आती है उससे तृप्ति मिलती है।
मुनि श्री क्षमासागर जी
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जिसने मन कौ मार दयौ,
उसके मार्दव-धर्म आ गयौ।
2) जन्म लेते ही सबसे पहले मान का उदय होता है।
आचार्य श्री विद्या सागर जी
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मार्दव-धर्म की पराकाष्ठा….
80 वर्षीय आचार्य श्री ज्ञान सागर जी ने अपने युवा शिष्य को अपना गुरु बना कर समाधि-मरण की प्रार्थना की।
मुनि श्री विनम्र सागर जी
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मार्दव का मतलब मृदुता का भाव होना होता है, अथवा मान के अभाव का नाम होता है। इसमें अपने मुख से जाति,बुद्धि,तप का अभिमान नहीं करना चाहिए। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि दूसरों के गुणों में आनन्द महसूस करते हैं तो आपके भीतर मृदुता एवं कोमलता आनी शुरू हो गई है। अतः मान सम्मान मिलने के साथ हमारे भीतर कृतज्ञता और विनय आती है, उससे तृप्ति मिलती है। अतः जीवन में कभी अभिमान नहीं करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।ग