उत्तम संयम
अपने मन-वचन और इन्द्रियों को संयमित कर लेना, नियमित कर लेना, नियन्त्रित कर लेना, इसी का नाम संयम है।
यदि हमने अपने जीवन में सत्य-ज्योति हासिल कर ली है तो हमारा दायित्व है, हमारा कर्तव्य है कि हम उस पर संयम की एक चिमनी भी रख दें जिससे वह सच्चाई की ज्योति कभी बुझ नहीं पाये।
मुनि श्री क्षमासागर जी
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संयम धर्म का तात्पर्य व़त समिति का पालन करना, मन वचन काय की अशुभ प़वृति का त्याग करना तथा पांचों इन्द़ियो पर नियंत्रण करना होता है।
अतः मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि मन वचन और इन्द्रियों को संयमित कर लेना,नियमत कर लेने का नाम संयम है । अतः संयम की एक चिमनी रख दें जिससे सच्चाई की ज्योति कभी नहीं बुझ सकती है। अतः उक्त क़ियाओं से लोभ, अहंकार,मोह आदि समाप्त किया जा सकता है।