गुण/स्वभाव जैसे जीव का ज्ञान/दर्शन,
धर्म जैसे जीव का रत्नत्रय ।
जीव बिना स्वभाव/ज्ञान/दर्शन के रह नहीं सकता,
पर जीव बिना रत्नत्रय के धार्मिक* भी हो सकता है, अधार्मिक** भी ।
चिंतन
* 4थे और 5वें गुणस्थान वाले
** 1 से 3रे गुणस्थान वाले
Share this on...
One Response
जीव- – जो जानता देखता है उसे कहते हैं या जिसमें चेतना होती है। धर्म- – सम्यग्दर्शन,सम्यकज्ञान और सम्यग्चारित्र,इन तीन गुणों को कहते हैं। गुण- – जो एक द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है उसे कहते हैं।गुण सदा द़व्य के आश्रित रहते हैं एवं प़त्येक द़व्य में अनेक गुण होते हैं।
रत्नत्रय- – सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीन गुणों को कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि जीव बिना स्वभाव, ज्ञान और दर्शन के रह नहीं सकता है पर जीव बिना रत्नत्रय के धार्मिक भी हो सकता है एवं आधर्मिक भी हों सकता है।
One Response
जीव- – जो जानता देखता है उसे कहते हैं या जिसमें चेतना होती है। धर्म- – सम्यग्दर्शन,सम्यकज्ञान और सम्यग्चारित्र,इन तीन गुणों को कहते हैं। गुण- – जो एक द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है उसे कहते हैं।गुण सदा द़व्य के आश्रित रहते हैं एवं प़त्येक द़व्य में अनेक गुण होते हैं।
रत्नत्रय- – सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीन गुणों को कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि जीव बिना स्वभाव, ज्ञान और दर्शन के रह नहीं सकता है पर जीव बिना रत्नत्रय के धार्मिक भी हो सकता है एवं आधर्मिक भी हों सकता है।