कर्मफल
समय से पहले फल चखने का भाव न करें ।
क्योंकि अधपका फल स्वादिष्ट नहीं, स्वास्थ्यवर्धक भी नहीं तथा उसमें हिंसा (जीवराशि) ज्यादा ।
ताप (तप) से पकाने पर लाभदायक ।
(इसीलिये जबलपुर के अस्पताल का नाम “पूर्णायु” रक्खा है)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
समय से पहले फल चखने का भाव न करें ।
क्योंकि अधपका फल स्वादिष्ट नहीं, स्वास्थ्यवर्धक भी नहीं तथा उसमें हिंसा (जीवराशि) ज्यादा ।
ताप (तप) से पकाने पर लाभदायक ।
(इसीलिये जबलपुर के अस्पताल का नाम “पूर्णायु” रक्खा है)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
One Response
कर्मफल का आशय ऐसा करना कि मैं भोगता हूं। अज्ञानी संसारी जीव इंद्रिय सुख दुःख में तन्मय होकर सुखी दुःखी ऐसा अनुभव करता है।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि समय से पहले फल चखने का भाव नहीं रखना चाहिए क्योंकि अधपका फल स्वादिष्ट नहीं होता है, स्वास्थ्यवर्धक भी नहीं, उसमें हिंसा भी होती है। अतः पक जाने यानी तपाने पर ही लाभदायक होता है।
अतः अपने कर्मों को तपाने पर ही फल मिल सकता है। इसलिए जबलपुर के अस्पताल का नाम पूर्णायु रखा गया है।