कृत्रिम-अकृत्रिम
प्राकृतिक नियम है –
हर चीज अपनी विरोधी चीज के साथ रहती है, कृत्रिम के साथ अकृत्रिम, नश्वर के साथ अनश्वर ।
यदि संसार में सब कुछ, जो दिख रहा है वह नश्वर/कृत्रिम है (सर्व स्वीकृत से) तो अन्दर आत्मा अनश्वर/अकृत्रिम होगी ही ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि जीवन में कृत्रिम और अकृत्रिम दोनों होते हैं,यह एक दूसरे के विपरीत रहते हैं। संसार में जो कुछ भी है वह सब नश्वर है, लेकिन सिर्फ आत्मा ही अनश्वर एवं अकृत्रिम अवश्य होती है। अतः जिस जीव को आत्मा का ध्यान होगा वही अपने जीवन का कल्याण कर सकता है।