सामान्य केवली का खून सफेद नहीं होता ।
सिर्फ तीर्थंकरों का होता है, क्योंकि खून सफेद होना जन्म का अतिशय हैं, केवलज्ञान का नहीं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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केवली का तात्पर्य चार घातिया कर्मों के क्षय होने से जिन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया है । यह दो प्रकार के होते हैं, सयोग केवली और अयोग केवली । केवलज्ञान जो सकल चराचर जगत दर्पण में झलकता है, एवं प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है । यह ज्ञान चार घातिया कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है । अतः मुनि महाराज जी ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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केवली का तात्पर्य चार घातिया कर्मों के क्षय होने से जिन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया है । यह दो प्रकार के होते हैं, सयोग केवली और अयोग केवली । केवलज्ञान जो सकल चराचर जगत दर्पण में झलकता है, एवं प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है । यह ज्ञान चार घातिया कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है । अतः मुनि महाराज जी ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।