क्षयोपशम 2 प्रकार का –
1. कर्मरूप… सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि दोनों के होता है।
2. भावरूप… सम्यग्दृष्टि के ही, सम्यग्दर्शन होने तथा बनाये रखने के लिये, आत्मा के भावों की विशुद्धता से।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने क्षयोपशम का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन का कल्याण करना है तो भावरुप क्षयोपशम होना चाहिए!
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने क्षयोपशम का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन का कल्याण करना है तो भावरुप क्षयोपशम होना चाहिए!