गुण / दोष
दूसरों के अवगणों को नहीं देखना ही,
अपने भीतर के अवगुणों को फ़ेंक देना है;
और
दूसरों के गुणों को देखना ही,
एक प्रकार से अपने भीतर गुणों को पैदा करना है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
दूसरों के अवगणों को नहीं देखना ही,
अपने भीतर के अवगुणों को फ़ेंक देना है;
और
दूसरों के गुणों को देखना ही,
एक प्रकार से अपने भीतर गुणों को पैदा करना है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
One Response
गुण दोष प़तेक जीव में होते हैं। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है दूसरों के अवगुणों को नहीं देखना चाहिए बल्कि अपने भीतर के अवगुणों को फेंक देना चाहिए और दूसरों के गुणों को देखना चाहिए। अतः इस प्रकार अपने भीतर गुणों को पैदा करना होता है।