निगोदिया – सूक्ष्म भी, बादर भी ।
निगोदिया अपर्याप्तक भी (एक सांस में 18 बार जन्म मरण सारे जीवों का), पर्याप्तक भी – अंतर्मुहूर्त आयु ।
सारे लब्धिपर्याप्तकों के श्वासोच्छवास नहीं ।
श्वासोच्छवास में सारे जीव नोकर्म वर्गणायें वायु के रूप में लेते हैं।
पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
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जीव—जो जानता है या जिसमें चेतना होती है।जीव दो प़कार के होते हैं, संसारी जीव और मुक्त जीव।संसारी जीव जन्म मरण के दुख भोगते रहते हैं लेकिन मुक्त जीव आत्म पुरुषार्थ के द्वारा जन्म मरण के चक़ से मुक्त होकर संसार से पार हो जाते हैं।संसारी जीव अपने कर्मो के द्वारा 84 योनियों में घूमता रहता है। निगोदिया जीव सूक्ष्म और बादर भी होते हैं।निगोदिया अपर्याप्तिक और पर्याप्तिक होते हैं, निगोद जीव जो अनन्त जीवों का एक निवास भी रहता है।
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जीव—जो जानता है या जिसमें चेतना होती है।जीव दो प़कार के होते हैं, संसारी जीव और मुक्त जीव।संसारी जीव जन्म मरण के दुख भोगते रहते हैं लेकिन मुक्त जीव आत्म पुरुषार्थ के द्वारा जन्म मरण के चक़ से मुक्त होकर संसार से पार हो जाते हैं।संसारी जीव अपने कर्मो के द्वारा 84 योनियों में घूमता रहता है। निगोदिया जीव सूक्ष्म और बादर भी होते हैं।निगोदिया अपर्याप्तिक और पर्याप्तिक होते हैं, निगोद जीव जो अनन्त जीवों का एक निवास भी रहता है।