श्रावकों के लिये तत्वार्थ-सूत्र मुख्यत: सातवें अध्याय तक, दान की चर्चा करके समाप्त ।
आगे मुख्यत: मुनियों के लिये,
हाँ ! श्रावक अभ्यास कर सकते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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तत्त्व का मतलब जिस वस्तु का जो भाव है वही होता है आशय यह है कि जो पदार्थ जिस रुप में अवस्थित है,उसका रुप होना,यही तत्व शब्द का अर्थ होता है। अतः तत्यार्थ सूत्र ग़न्थ सामायिक के समय नहीं पढ़ना चाहिए, रात्री में पढ़ सकते हैं। यह भावनात्मक स्तुति परत शास्त्र को किसी समय भी पढ़ सकते हैं।
महाराज का उक्त कथन सत्य है कि श्रावकों के लिए तत्यार्थ सूत्र मुख्यत सातवें अध्याय तक अथवा दान की चर्चा करके समाप्त होता है, इसके आगे मुख्यतः मुनियों के लिए होता है। लेकिन श्रावक अभ्यास कर सकते हैं।
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तत्त्व का मतलब जिस वस्तु का जो भाव है वही होता है आशय यह है कि जो पदार्थ जिस रुप में अवस्थित है,उसका रुप होना,यही तत्व शब्द का अर्थ होता है। अतः तत्यार्थ सूत्र ग़न्थ सामायिक के समय नहीं पढ़ना चाहिए, रात्री में पढ़ सकते हैं। यह भावनात्मक स्तुति परत शास्त्र को किसी समय भी पढ़ सकते हैं।
महाराज का उक्त कथन सत्य है कि श्रावकों के लिए तत्यार्थ सूत्र मुख्यत सातवें अध्याय तक अथवा दान की चर्चा करके समाप्त होता है, इसके आगे मुख्यतः मुनियों के लिए होता है। लेकिन श्रावक अभ्यास कर सकते हैं।