तेजस्विता
1922-23 में आचार्य श्री शांतिसागर जी दक्षिण से उत्तर की ओर आ रहे थे।
लोगों ने उत्तर की कठिनाइयों के लिये निवेदन किया कि आप संकट निवारण के लिये कोई मंत्र सिद्ध कर लें।
आचार्य श्री…जिसे लोग णमोकार में जपते हैं उसका तो जीवन ही मंत्र है।
आचार्य श्री हैदराबाद पहुँचे तो वहाँ के निज़ाम अपनी बेगमों के साथ आगवानी करने पहुँचे;
कट्टरपंथियों ने टिप्पणियाँ कीं।
निज़ाम का जबाब था…इस राज्य में नंगों पर प्रतिबंध है, फ़रिश्तों के लिये नहीं।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज जी दक्षिण से उत्तर भारत को आ रहे थे,तभी हैदराबाद से निकलने में कठिनाई का सामना करना पड़ा था, उनको संकट से निपटने के लिए णमोकार मंत्र का उच्चारण करने के लिए कहा गया था।यह उनकी तेजस्विता का उदाहरण था। आजकल भी निर्ग्रन्थ गुरुओं का तेजास्विवता के कारण पूरा विश्व उनको नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु करता है।आज श्री विद्यासागर महाराज जी की तेजस्विता के कारण जैन धर्म का विकास हो रहा है। णमोकार मंत्र को को पढ़ने से पापों की निर्जरा होती है।