दिव्य ध्वनि जब तक श्रोता के कान तक नहीं पहुँचती तब तक “अनुभय”।
पहुँचने पर जितना समझ आ जाय वह “सत्य”, जितना समझ न आये (क्षयोपशम की कमी के कारण) वह “अनुभय”।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड गाथा – 227)
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मुनि महाराज जी का कथन दिव्य ध्वनि का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!
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