दिव्यध्वनि तो भगवान की, फिर उसे देवकृत अतिशय क्यों कहा ?
क्योंकि देवता दिव्यध्वनि को 12 कोठों में सुचारु रूप से सुनाने में सहायक होते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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दिव्यध्वनि का तात्पर्य जब केवलज्ञान होते ही अर्हन्त भगवान् के मुख से जो सब जीवों के कल्याण करने वाली ओंकार वाणी खिरती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि क्योंकि देवता दिव्य ध्वनि को बारह कोठों में सुचारू रूप से सुनाने में सहायक होते हैं, इसलिए देवकृत अतिशय कहा जाता है।
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दिव्यध्वनि का तात्पर्य जब केवलज्ञान होते ही अर्हन्त भगवान् के मुख से जो सब जीवों के कल्याण करने वाली ओंकार वाणी खिरती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि क्योंकि देवता दिव्य ध्वनि को बारह कोठों में सुचारू रूप से सुनाने में सहायक होते हैं, इसलिए देवकृत अतिशय कहा जाता है।