देव-दर्शन

प्रायः कहा जाता है ….
देव-दर्शन अनंत बार किये होंगे, पर उससे क्या हुआ ?

आज देव-दर्शन ऐसे करो कि जैसे पहली बार कर रहे हो (अद्याष्टक- स्तोत्र), तब होगा ।
ऐसे दर्शन, सम्यग्दर्शन में निमित्त बनते हैं ।
श्री अष्टपाहुड़/धवला जी में भी कहा है – अनंत बार भोजन भी तो किया/उगाल खाये जा रहे हो, उसके प्रति तो गृद्धता भी कम नहीं की !
(बस, देव-दर्शन न करने के बहाने तलाशते रहते हो/ तर्क देते रहते हो)

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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One Response

  1. दर्शन— जो मोक्ष मार्ग को दिखाये ।
    सम्यग्दर्शन का तात्पर्य सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्धान होता है अथवा जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गए सात तत्वों के यथार्थ श्रद्वान को कहते हैं।
    अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि ऐसे दर्शन जो सम्यग्दर्शन के निमित्त बनते हैं और ऐसे दर्शन करें जैसे प़थम बार कर रहे हैं और जिसमें दृढ़ता होना आवश्यक है। जिसमें उदाहरण दिया गया है कि भोजन तो प़त्येक दिनों करते हैं,अगर नहीं करते हैं तो आकुलता होती है। अतः जीवन में प़त्येक दिन श्रद्धानुसार करना आवश्यक है ताकि मोक्ष मार्ग के प्रति जागरूक रह सकते हैं।

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