देवों की अवगाहना
पहले दूसरे स्वर्ग में 7 हाथ*, 3-4 –> 6, 5-8 –> 5, 9-12 –> 4, अब ½, ½ हाथ कम होगी।
13-अः14 –> 3½, 15-16 –> 3,
ग्रैवेयिक-अधो –> 2½, मध्य –> 2, उर्ध्व –> 1½, 9 अनुदिश –> 1½, अनुत्तर –> 1।
*हाथ –> खुला हाथ, मध्य उंगली तक,
रत्नि –> मुट्ठी बंद हाथ,
अरत्नि –> कनिष्ठा खुली हाथ (देवों की अवगाहना अरत्नि से ही)।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 4/21)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने देवों की अवगाहन को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Is post me ‘रत्नि’ aur ‘अरत्नि’ ka kya meaning hai,please?
यह अवगाहना नापने का नाप है। रत्नी यानी कुहनी से लेकर बंद मुट्ठी तक, अरत्नि कनिष्ठा से खुले हाथ तक (देवों की अवगाहना इसी से नापी जाती है)।
Okay.