व्यवहार सापेक्ष है, पर्याय की अपेक्षा ।
निश्चय को भी सापेक्ष कह सकते हैं, पर द्रव्य की अपेक्षा ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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5 Responses
निश्चय नय का तात्पर्य जो अभेद रुप से वस्तु का निश्चय करता है, निश्चय नय वस्तु को जानने का ऐसा द्वष्टिकोण है जिसमें कर्ता कर्म आदि भाव एक दूसरे से भिन्न नहीं होते हैं,यह दो प्रकार के होते हैं शुद्ध और अशुद्ध। इसी प्रकार व्यवहार नय का तात्पर्य संग़ह नय के द्वारा ग़हण किये गये पदार्थों का विधिपूर्वक भेद करना होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि व्यवहार साक्षेप है, पर्याय की अपेक्षा है जबकि निश्चय को भी सापेक्ष कह सकते हैं,पर द़व्य की अपेक्षा से। अतः निश्चय अटल होता है लेकिन व्यवहार होना आवश्यक है।
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निश्चय नय का तात्पर्य जो अभेद रुप से वस्तु का निश्चय करता है, निश्चय नय वस्तु को जानने का ऐसा द्वष्टिकोण है जिसमें कर्ता कर्म आदि भाव एक दूसरे से भिन्न नहीं होते हैं,यह दो प्रकार के होते हैं शुद्ध और अशुद्ध। इसी प्रकार व्यवहार नय का तात्पर्य संग़ह नय के द्वारा ग़हण किये गये पदार्थों का विधिपूर्वक भेद करना होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि व्यवहार साक्षेप है, पर्याय की अपेक्षा है जबकि निश्चय को भी सापेक्ष कह सकते हैं,पर द़व्य की अपेक्षा से। अतः निश्चय अटल होता है लेकिन व्यवहार होना आवश्यक है।
Is context me, “सापेक्ष” ka kya meaning hai?
प्रायः “निश्चय” निरपेक्ष कहा गया है,
परन्तु द्रव्य की अपेक्षा सापेक्ष भी कह सकते हैं ।
“Sapeksh” ka kya meaning hai, please?
सापेक्ष, किसी अपेक्षा से ।