समाधि के लिये पहले समधी बनना पड़ता है, परिग्रह-त्याग प्रतिमा के लिये “समाधी” शब्द आया है।
परिग्रह को आप नहीं रखते, परिग्रह आपको रखता है/आपको चारों ओर से जकड़ कर रखता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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परिग़ह का तात्पर्य यह मेरी है,इसका स्वामी हूं, इस प्रकार का ममत्व भाव ही परिग़ह होता है।यह दो प़कार के होते हैं, अंतरंग एवं ब़ाह्य परिग़ह। अंतरंग में रागदि, एवं कषाय भाव होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि समाधि के लिए परिग़ह का त्याग करना आवश्यक है।परिग़ह को आप नहीं रखते, बल्कि परिग़ह आपको जोड़कर रखता है। अतः जब समाधि का समय आवे तो परिग़ह का त्याग करना परम आवश्यक है। साधुओं के लिए अंतरंग परिग़ह का त्याग करना होता है ताकि संलेखना पूर्ण हो सके।
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परिग़ह का तात्पर्य यह मेरी है,इसका स्वामी हूं, इस प्रकार का ममत्व भाव ही परिग़ह होता है।यह दो प़कार के होते हैं, अंतरंग एवं ब़ाह्य परिग़ह। अंतरंग में रागदि, एवं कषाय भाव होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि समाधि के लिए परिग़ह का त्याग करना आवश्यक है।परिग़ह को आप नहीं रखते, बल्कि परिग़ह आपको जोड़कर रखता है। अतः जब समाधि का समय आवे तो परिग़ह का त्याग करना परम आवश्यक है। साधुओं के लिए अंतरंग परिग़ह का त्याग करना होता है ताकि संलेखना पूर्ण हो सके।