पूज्यता स्वापेक्ष है ।
46 गुण वाले तीर्थंकर की ही पूजा की जाती है, सामान्य केवली की नहीं, क्योंकि तीर्थंकर के पास ही अंतरंग तथा बाह्य लक्ष्मी होती है और गृहस्थ को दोनों लक्ष्मी की दरकार होती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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6 Responses
पूजा का मतलब पंचपरमेष्ठी के गुणो का चिंतवन करना होता है जिसकी पूजा की जाती है जो पूज्यता के योग्य होता है।अतः 46 गुण वाले तीर्थंकर की ही पूजा की जाती है लेकिन सामान्य केवली की नहीं, क्योकि तीर्थंकर के पास अंतरग तथा बाह्म लक्ष्मी होती है जब की गृहस्थो को दोनो लक्ष्मी की दरकरार होती है।
स्वापेक्ष = स्वयं की अपेक्षा ।
जैसे 46 गुण वाले अरहंतों की ही प्रायः पूजा होती है ।
सामान्य-केवली पूज्य तो होते हैं, पर श्रावकों को तो मोक्ष-लक्ष्मी के साथ-साथ श्री-लक्ष्मी भी चाहिए जो तीर्थंकरों के पास ही समवसरण के रूप में होती है ।
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पूजा का मतलब पंचपरमेष्ठी के गुणो का चिंतवन करना होता है जिसकी पूजा की जाती है जो पूज्यता के योग्य होता है।अतः 46 गुण वाले तीर्थंकर की ही पूजा की जाती है लेकिन सामान्य केवली की नहीं, क्योकि तीर्थंकर के पास अंतरग तथा बाह्म लक्ष्मी होती है जब की गृहस्थो को दोनो लक्ष्मी की दरकरार होती है।
What do we mean by “Sapeksh” aur samanya kevali ki bhi puja to karte hain na?
स्वापेक्ष = स्वयं की अपेक्षा ।
जैसे 46 गुण वाले अरहंतों की ही प्रायः पूजा होती है ।
सामान्य-केवली पूज्य तो होते हैं, पर श्रावकों को तो मोक्ष-लक्ष्मी के साथ-साथ श्री-लक्ष्मी भी चाहिए जो तीर्थंकरों के पास ही समवसरण के रूप में होती है ।
By 46 guna waale Arihanton se aapka taatparya, “Teerthankaron” se hai, na?
yes.
Okay.