प्रतिक्रमण पहले किया जाता है, तब सामायिक ।
जब तक अपने पापों को स्वीकारोगे नहीं, निर्विकल्प होकर आत्मचिंतन नहीं कर सकते ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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प़तिक़मण का मतलब किए गए दोषों की निवृति का नाम है,यह साधुओं का मूल गुण है।
सामायिक का मतलब समता भाव रखना होता है ,यह श्रावक और साधु दोनों को करना आवश्यक है।
अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि प़तिक़मण पहिले किया जाता है, उसके बाद सामायिक। अतः जब तक अपने पापों को स्वीकार करोगे नहीं, निर्विकल्प होकर आत्म चिंतन नहीं कर सकते हैं।
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प़तिक़मण का मतलब किए गए दोषों की निवृति का नाम है,यह साधुओं का मूल गुण है।
सामायिक का मतलब समता भाव रखना होता है ,यह श्रावक और साधु दोनों को करना आवश्यक है।
अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि प़तिक़मण पहिले किया जाता है, उसके बाद सामायिक। अतः जब तक अपने पापों को स्वीकार करोगे नहीं, निर्विकल्प होकर आत्म चिंतन नहीं कर सकते हैं।