प्रत्याख्यान पूर्व
प्रत्याख्यान पूर्व(9वाँ पूर्व) = त्याग (सावद्य का, आगामी समय के लिये)।
इसी पूर्व को तीर्थंकर के पादमूल में 8 वर्ष तक पढ़ कर परिहार-विशुद्धि होती है, इतनी विशुद्धि कि जीव तथा तंतु (जैसे मकड़ी के जाले) कहाँ-कहाँ मिलते हैं, उनकी विराधना/ नुकसान न हो जाय, ऐसा ज्ञान/ अहिंसा का ऐसी सूक्ष्मता से पालन।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा – 366)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने प़त्याख्यान पूर्व का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
‘सावद्य’ ka kya meaning hai, please ?
वे सब क्रियायें जिनमें हिंसा होती है।
Okay.