बोलना
बोलने में शारीरिक श्रम लगता है/खून ख़र्च होता है। एक शब्द के उच्चारण में एक पाव दूध जितनी शक्ति लगती है।
इसलिये कम बोलना चाहिये, कम बोलने से गंभीरता बनी रहती है/सोचने की क्षमता बढ़ जाती है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
बोलने में शारीरिक श्रम लगता है/खून ख़र्च होता है। एक शब्द के उच्चारण में एक पाव दूध जितनी शक्ति लगती है।
इसलिये कम बोलना चाहिये, कम बोलने से गंभीरता बनी रहती है/सोचने की क्षमता बढ़ जाती है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
One Response
जीवन में कम बोलना, मीठा या उचित बोलना ही, जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा है कि बोलने में शारीरिक श्रम एवं खून ख़र्च होता है एवं बोलने में शक्ति लगती है, कम बोलने पर गंभीरता बनी रहती है एवं सोचने की क्षमता बढ जाती है।