भाग्य बीज है,
पुरुषार्थ बोना ।
उचित फसल (फल) लेने के लिये दोनों आवश्यक हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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यह कथन सत्य है कि भाग्य बीज यानी कर्म होते हैं लेकिन पुरुषार्थ यानी चेष्टा या प़यत्न करना होता है।अतः बीज को बोने का पुरुषार्थ तो करना आवश्यक है ताकि उचित फसल यानी उसका फल मिल सकता है।अतः बीज की तरह कर्मो के उचित फल के लिए उचित कर्मो का पुरुषार्थ करना चाहिए ताकि उचित परिणाम प़ाप्त हो सकता है।
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यह कथन सत्य है कि भाग्य बीज यानी कर्म होते हैं लेकिन पुरुषार्थ यानी चेष्टा या प़यत्न करना होता है।अतः बीज को बोने का पुरुषार्थ तो करना आवश्यक है ताकि उचित फसल यानी उसका फल मिल सकता है।अतः बीज की तरह कर्मो के उचित फल के लिए उचित कर्मो का पुरुषार्थ करना चाहिए ताकि उचित परिणाम प़ाप्त हो सकता है।