सामान्यत: 4 ( औदायिक, पारिणामिक, क्षयोपशमिक, औपशमिक या क्षायिक), लेकिन क्षायिक सम्यग्दृष्टि जब उपशम श्रेणी चढ़ेगा तब पाँचों भाव रह सकते हैं। (हाँ, एक समय में एक भाव ही रहेगा)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- 2/5)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भाव को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए हमेशा विशुद्ध एवं निर्मल भाव रखना परम आवश्यक है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भाव को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए हमेशा विशुद्ध एवं निर्मल भाव रखना परम आवश्यक है।