भावकर्म = रागद्वेष आदि।
“आदि” में योग भी लेना क्योंकि योग भी रागद्वेष की तरह कर्मबंध में कारण है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने भावकर्म की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है! जीवन में विशुद्ध भावना कर्म होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने भावकर्म की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है! जीवन में विशुद्ध भावना कर्म होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
‘कर्मबंध’ ki ‘sthiti’ aur ‘anubhaag’ में ‘रागद्वेष’ ka zyaada contribution hota hai ya ‘योग’ ka ?
रागद्वेष का ही।
योग का role तो रागद्वेष समाप्त (10वें गुणस्थान के आगे) होने पर शुरू होता है।
To kya ’10वें गुणस्थान’ के pehle, ‘योग’ का role nahi hai ?
10वें गुणस्थान तक योग प्रकृति व प्रदेश बंध में कारण होता है।
आगे स्थिति,अनुभाग में भी।
Okay.