मूर्ति का महत्व

प्रत्यक्ष से ज्यादा उसकी कल्पना में आनंद आता है। कल्पना का अंत नहीं, साक्षात दर्शन के बाद अंत आ जाता है।
मूर्ति के निमित्त से मूर्तिमान की कल्पना में भक्त खोया रहता है।

क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी

Share this on...

4 Responses

  1. क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णी जी ने मूर्ति का महत्व का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में भगवान् की कल्पना न करते हुए मूर्ति के दर्शन करने पर ही आनन्द की प़ाप्ती होती है।

    1. जिसकी मूर्ति हो, उसे ही मूर्ति में प्रत्यक्ष देखना।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

January 7, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930