राग यानि “ये मेरा है”,
द्वेष यानि “ये मेरा नहीं है” ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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राग का मतलब इष्ट पदार्थों से प्रीत या हर्ष रुप परिणाम होना है। जबकि द्वेष का मतलब अप़ीति या बैर भाव होना होता है, इसमें क़ोध,मान,शोक, भय आदि होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि राग होना मेरा है और द्वेष होना ये मेरा नहीं है। जीवन में राग और द्वेष होना बहुत ख़तरनाक है। जीवन में राग भगवान् से रख सकते हो लेकिन अपने से नहीं। इसी प्रकार दूसरों के प्रति द्वेष की जगह प़ेम रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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राग का मतलब इष्ट पदार्थों से प्रीत या हर्ष रुप परिणाम होना है। जबकि द्वेष का मतलब अप़ीति या बैर भाव होना होता है, इसमें क़ोध,मान,शोक, भय आदि होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि राग होना मेरा है और द्वेष होना ये मेरा नहीं है। जीवन में राग और द्वेष होना बहुत ख़तरनाक है। जीवन में राग भगवान् से रख सकते हो लेकिन अपने से नहीं। इसी प्रकार दूसरों के प्रति द्वेष की जगह प़ेम रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।