विनय
आचार्य श्री विद्यासागर जी का स्वास्थ अच्छा नहीं था ।
मुनिजन वैय्यावृत्ति कर रहे थे । आचार्य श्री दीवार से पीठ टिकाये बैठे थे ।
पीठ पर वैय्यावृत्ति करने का विनय पूर्ण तरीका निकाला – ब्रह्मचारी भैया ! ज़रा दीवार पीछे खिसका देना ताकि हम पीठ की वैय्यावृत्ति कर लें ।
आचार्य श्री आगे खिसक गये – लो दीवार पीछे हो गयी ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
विनय का तात्पर्य पूज्य पुरुषों का आदर करना होता है, अथवा रत्नत्रय कोई धारण करने वाले पुरुषों के प्रति नम़ता धारण करना विनय तप होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी रत्नत्रय धारण करने वाले हैं, अतः उनके साथ जो कहा गया है,वह पूर्ण सत्य है क्योंकि यह विनय तप ही है।