व्यक्तित्व निर्माण
घंटे में मधुर ध्वनि यों ही नहीं निकल आती !
पहले धातु तेज अग्नि में तपती है, सांचे में ढ़लती है फ़िर Fine Polish की जाती है, तब मंदिर की शोभा बढ़ाती है/मधुर स्वर से भगवान की स्तुति करती है ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
घंटे में मधुर ध्वनि यों ही नहीं निकल आती !
पहले धातु तेज अग्नि में तपती है, सांचे में ढ़लती है फ़िर Fine Polish की जाती है, तब मंदिर की शोभा बढ़ाती है/मधुर स्वर से भगवान की स्तुति करती है ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि व्यक्तित्व निर्माण में पुरुषार्थ करने की आवश्यकता होती है, जैसे भगवान् को भी मोक्ष तभी प्राप्त हुआ था जब मोक्षमार्ग पर चलकर कठिन तपस्या और ध्यान किया गया था। अतः मन्दिर के घन्टे को तपाकर बनाया जाता है, अतः व्यक्तित्व के लिए पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है।